उत्तर प्रदेश सरकार ने जाति आधारित रैलियों, कार्यक्रमों और सार्वजनिक गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबंध लगाया है. अब राज्य में पुलिस एफआईआर, अरेस्ट मेमो, सार्वजनिक जगहों और सरकारी दस्तावेज़ों में किसी व्यक्ति की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा. यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद जारी किया गया है. यूपी के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने शासन की ओर से इस निर्देश की आधिकारिक सूचना जारी की.
आदेश की मुख्य बातें
सरकारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट पर जातिगत महिमामंडन या नफरत फैलाने वाले कंटेंट के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी. इसके तहत एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो और चार्जशीट जैसी सरकारी दस्तावेजों से जाति का नाम पूरी तरह हटा दिया जाएगा.
1. आरोपी की पहचान हेतु अब पिता के साथ मां का नाम लिखा जाएगा.
2. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के क्राइम क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (सीसीटीएनएस) में जाति कॉलम खाली रखा जाएगा और एनसीआरबी को इसे हटाने के लिए पत्र लिखा जाएगा.
3. गाड़ियों पर जातिगत प्रतीक या महिमामंडन पर प्रतिबंध रहेगा.
4. सार्वजनिक स्थानों, नोटिस बोर्ड और सोशल मीडिया पर जातिगत नारों या महिमामंडन पर पूरी तरह रोक रहेगी.
5. एससी/एसटी एक्ट जैसे मामलों में जाति का उल्लेख जरूरी होने पर छूट दी जाएगी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त रुख
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जाति व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि समाज में जातिगत महिमामंडन समाप्त होना चाहिए. कोर्ट ने सरकारी दस्तावेज़, सार्वजनिक स्थल और गाड़ियों से जाति के नाम, प्रतीक और निशान हटाने का निर्देश दिया. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है तो जातिगत प्रथाओं को खत्म करना आवश्यक होगा. इस आदेश के पीछे एक केस था, जो इटावा में कथित शराब तस्करी से संबंधित था. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि जातिगत महिमामंडन राष्ट्र-विरोधी है.
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस विनोद दिवाकर की सिंगल बेंच ने कहा कि जातिगत महिमामंडन देशभक्ति के सिद्धांतों के विपरीत है. न्यायालय ने जोर देकर कहा कि वंश या जाति की बजाय संविधान के प्रति श्रद्धा ही सच्ची देशभक्ति और राष्ट्र सेवा की अभिव्यक्ति है.
कोर्ट ने नीति और नियम बनाने वालों को सुझाव दिया कि सार्वजनिक वाहनों और स्थानों में जाति के प्रतीक और नारों पर अंकुश लगाया जाए. सोशल मीडिया पर जातिगत महिमामंडन वाली सामग्री नियंत्रित की जाए. विशेष जातियों के बजाय अंतर-जातीय संस्थानों और सामुदायिक केंद्रों को बढ़ावा दिया जाए.
सामाजिक प्रभाव
इस कदम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश में समाज में समरसता बढ़ाना और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना है. आदेश से यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी प्रक्रियाओं और सार्वजनिक जीवन में जाति का उल्लेख घटे और सभी नागरिकों के बीच समानता का माहौल बन सके.