Pitru Paksha: पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है. यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक लगभग 16 दिन चलती है. इस दौरान पितरों की तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में सात्त्विक भोजन ग्रहण करना शुभ और आवश्यक माना जाता है.
धार्मिक मान्यताएं और स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी: पितृपक्ष में प्याज और लहसुन का सेवन करना वर्जित है. शास्त्रों के अनुसार, ये खाद्य पदार्थ तामसिक और कभी-कभी राजसिक श्रेणी में आते हैं. इनके सेवन से न केवल आध्यात्मिक साधना में बाधा आती है, बल्कि पितरों की कृपा भी प्रभावित होती है.
पितृपक्ष और सात्विक आहार का महत्व
पितृपक्ष को महालय पक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. इस दौरान पितरों को संतुष्ट करने के लिए पवित्र और सात्विक भोजन आवश्यक है. सात्विक आहार जैसे फल, दूध, दही, हल्की सब्ज़ियां और अनाज शरीर को हल्का और मन को स्थिर रखते हैं. इसके विपरीत, तामसिक और राजसिक आहार जैसे प्याज-लहसुन मन में बेचैनी, क्रोध और वासना को बढ़ाते हैं.
प्याज और लहसुन से क्यों रखें परहेज
शास्त्रों में कहा गया है कि प्याज और लहसुन की उत्पत्ति राक्षसों से हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान राक्षस के शरीर से गिरी रक्त की बूंदों से ये उत्पन्न हुए. इसी कारण इन्हें अशुद्ध और तामसिक माना गया है.
आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन गर्म, तीखे और उत्तेजक गुण वाले होते हैं. ये इंद्रियों को उत्तेजित कर देते हैं और क्रोध, आलस्य, वासना को बढ़ाते हैं. योगी, संत और साधु इन्हें त्यागकर सात्विक भोजन को प्राथमिकता देते हैं, ताकि साधना में बाधा न आए.
पितरों की संतुष्टि और उनके आशीर्वाद
पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध से पितरों को परलोक में शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. संतुष्ट पितृ अपने वंशजों की आरोग्यता, आयु और समृद्धि में वृद्धि करते हैं. इसलिए, इस दौरान प्याज-लहसुन का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए. शास्त्रों में सलाह दी गई है कि पितृपक्ष के दौरान सात्विक भोजन ही ग्रहण करें, ताकि पितरों की कृपा और आशीर्वाद बना रहे.