अमेरिकी व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने रूस से ऊर्जा और रक्षा सामग्री खरीदने पर भारत की खुलेआम आलोचना की है और नई दिल्ली की नीति बदलने के लिए ‘भारत को वहीं चोट पहुंचानेट का संकल्प जताया है. मीडिया के अनुसार नवारो ने भारत के रूस के साथ तेल व्यापार को अवसरवादी करार दिया और कहा कि यह वैश्विक प्रयासों को चोट पहुंचा रहा है. नवारो जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप के पहले प्रशासन से ही व्यापार नीति का सबसे प्रभावशाली चेहरा माना जाता है. भारत पर आरोप लगाया कि उसके उच्च व्यापार शुल्क और नीतियां रूस के युद्ध प्रयासों के लिए अप्रत्यक्ष वित्तीय सहायता का रास्ता खोल रही हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की ओर से लगाए गए दंडात्मक शुल्कों का लक्ष्य भारत की व्यवहारिक नीति में बदलाव लाना है.
नवारो की मुख्य शिकायतें और आरोप
नवारो ने अपने लेख में लिखा कि भारत के वित्तीय सहयोग से रूस यूक्रेन पर लगातार हमले कर रहा है, इसलिए अमेरिकी और यूरोपीय करदाताओं को यूक्रेन की रक्षा के लिए अरबों डॉलर और खर्च करने पड़ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत रिफाइनरियों के माध्यम से रूस से रियायती दर पर तेल खरीद कर और प्रसंस्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को अन्य बाजारों में बेचकर मुनाफाखोरी कर रहा है. नवारो ने यह भी कहा कि 2022 के बाद रूस से कच्चे तेल के आयात में हुई वृद्धि केवल घरेलू खपत पूरी करने के उद्देश्य से नहीं है.
ट्रम्प प्रशासन के शुल्क और भारत की प्रतिक्रिया
नवारो ने अमेरिका की नीतियों का समर्थन करते हुए बताया कि ट्रम्प ने 30 जुलाई को अमेरिका भेजे जाने वाले भारतीय सामानों पर 25% का दंडात्मक शुल्क लगाने की घोषणा की और इसके साथ ही रूसी तेल की खरीद पर भी 25% का शुल्क लगाया जो अगले सप्ताह से लागू होने वाला है. भारत के विदेश मंत्रालय ने इन शुल्कों को अनुचित और बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है.
अमेरिका-भारत व्यापार और रणनीतिक विवाद
नवारो ने भारत के उच्च व्यापार शुल्कों और यूक्रेन के खिलाफ रूस की युद्धपथ में वित्तीय मदद के बीच संबंध जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि यह दोहरी नीति भारत को वहीं चोट पहुंचाएगी जहां उसे चोट पहुंचती है. अमेरिकी बाजारों तक उसकी पहुंच है. जबकि यह रूस के युद्ध प्रयासों को दी गई. उन्होंने आगे उल्लेख किया कि अगर भारत चाहता है कि उसे अमेरिका का रणनीतिक साझेदार माना जाए, तो उसे वैसा ही व्यवहार करना शुरू करना होगा.
रक्षा तकनीक हस्तांतरण और औद्योगिक सहयोग पर निशाना
नवारो ने अमेरिकी कंपनियों को लक्ष्य बनाकर कहा कि भारत में निर्माण और संवेदनशील तकनीकों का हस्तांतरण वाशिंगटन-नई दिल्ली के बीच व्यापार संतुलन सुधारने में मदद नहीं करेगा. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत रूस और चीन दोनों के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है.
पूर्व अधिकारी और विश्लेषकों की आपत्तियां
पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने नवारो के तर्कों पर प्रश्न उठाए हैं. इवान फेगेनबाम ने कहा कि बड़ा मुद्दा यह है कि विदेश मंत्री और अन्य प्रमुखों ने इस लेख को अधिकृत किया. इसलिए जो लोग बेहतर जानते हैं और जिनसे अमेरिकी हितों को संतुलित करने की अपेक्षा की जाती है, वे या तो इससे सहमत हैं, या असहमत हैं, लेकिन फिर भी इसे अधिकृत कर दिया है, या फिर परवाह ही नहीं करते. फेगेनबाम ने आगे कहा कि इससे वाशिंगटन की एक अजीबोगरीब कहानी पूरी हो गई है और अंततः अमेरिकी नीति चीन के साथ व्यापार युद्ध और रणनीतिक टकराव से हटकर भारत के साथ व्यापार युद्ध और रणनीतिक टकराव की ओर मुड़ गई है. मैं साफ-साफ कहूंगा यह सिर्फ रणनीतिक कदाचार है. फीगेनबाम ने यह कहा, जिन्होंने 2000 के दशक के मध्य में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत में मदद की थी.