बदल गया उत्तराखंड के ‘खूनी गांव’ का नाम, अब इस नाम से जाना जाएगा

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Uttarakhand

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के एक छोटे से गांव ‘खूनी’ ने आखिरकार वह पहचान त्याग दी, जो दशकों से उसके नाम से जुड़ी एक नकारात्मक छवि को दर्शा रही थी. राज्य सरकार ने अब इस गांव का नाम बदलकर ‘देवीग्राम’ कर दिया है. यह बदलाव न केवल नाम का है, बल्कि ग्रामीणों की भावनाओं और सांस्कृतिक आत्म-सम्मान से जुड़ा एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

लंबे समय से उठ रही थी मांग

इस गांव का नाम बदलने की मांग काफी लंबे समय से उठाई जा रही थी. गांववालों का कहना था कि “खूनी” नाम अपने आप में हिंसा और नकारात्मकता का प्रतीक बन गया है, जिससे सामाजिक और मानसिक रूप से असहजता महसूस होती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय लोगों ने कई बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इस संबंध में अपील की थी.

सरकार की अधिसूचना जारी

उत्तराखंड सरकार ने अब इस मांग को स्वीकार करते हुए आधिकारिक आदेश जारी किया है. आदेश में कहा गया, “जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, पिथौरागढ़ जिले की तहसील थिरागढ़ के ग्राम ‘खूनी’ का नाम परिवर्तित कर ‘देवीग्राम’ किया जा रहा है.”

सांसद अजय टम्टा ने जताई खुशी

अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद अजय टम्टा ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताई और इसे ऐतिहासिक कदम बताया. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद अब गांव को एक सकारात्मक और सांस्कृतिक पहचान मिली है. सांसद टम्टा ने बताया कि ग्रामवासियों और युवाओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए हमने इस विषय को गंभीरता से लिया. हमारी टीम ने लगातार एक साल तक इस विषय पर काम किया और छह विभिन्न मंत्रालयों से मंजूरी लेने के बाद यह प्रक्रिया पूरी की जा सकी.

नाम बदलना केवल प्रक्रिया नहीं

सांसद ने आगे लिखा, “‘खूनी’ शब्द अपने आप में हिंसा और भय का बोध कराता था. ऐसे में देवीग्राम नाम न केवल सकारात्मकता लाता है, बल्कि यह गांव की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक पहचान को भी दर्शाता है.” उन्होंने भारत सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस बदलाव से लोगों को एक नई पहचान और गर्व की अनुभूति होगी.

ग्रामवासियों की पुरानी इच्छा पूरी

गांव के लोगों ने भी इस परिवर्तन का स्वागत करते हुए कहा कि अब उन्हें अपने गांव के नाम को लेकर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी. देवीग्राम नाम गांव के धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश के अधिक अनुकूल है, और इससे क्षेत्र को एक नई सामाजिक और भावनात्मक पहचान भी मिलेगी.

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