विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हालिया नजदीकियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वाशिंगटन अपने ही इतिहास को भूल रहा है. उन्होंने याद दिलाया कि दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में पकड़ा गया था, जहां वह सैन्य प्रतिष्ठान के बीच सुरक्षित पनाह लिए हुए था. जयशंकर ने कहा कि अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का रिकॉर्ड विवादों से भरा रहा है.
ट्रंप के मध्यस्थता दावे को नकारा
जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अमेरिका ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने में मध्यस्थता की थी. विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच बातचीत से हुआ था, न कि किसी तीसरे पक्ष की पहल से. उन्होंने कहा कि यह सही है कि उस समय कई देशों से फोन कॉल्स हुए, जिनमें अमेरिका भी शामिल था. लेकिन यह सामान्य कूटनीतिक प्रक्रिया है और इसे मध्यस्थता का आधार नहीं माना जा सकता. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रूस-यूक्रेन और इज़राइल-ईरान युद्ध के दौरान भी भारत ने संबंधित देशों से बातचीत की थी, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत मध्यस्थ था.
अमेरिका-पाकिस्तान की पुरानी साझेदारी
जयशंकर ने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान का रिश्ता नया नहीं है. दोनों देशों का लंबा इतिहास है, लेकिन उस इतिहास को नजरअंदाज करने की परंपरा भी रही है. उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि जब कभी अमेरिका पाकिस्तान की सेना की सराहना करता है, तो यह वही सेना होती है जिसने ओसामा बिन लादेन को अपने देश में छिपा रखा था. उन्होंने इसे सुविधा की राजनीति करार देते हुए कहा कि कई बार देश सामरिक कारणों, लाभ या गणनाओं के चलते अपने पुराने अनुभवों को नजरअंदाज कर देते हैं.
राष्ट्रीय हितों पर काम करता है भारत
जयशंकर ने इस मौके पर यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर काम करता है. उन्होंने कहा कि अमेरिका की पाकिस्तान नीति जैसी चुनौतियों को भारत समझदारी और आत्मविश्वास के साथ देखता है. भारत जानता है कि उसके संबंधों का महत्व क्या है और उसकी ताकतें क्या हैं. यही दृष्टिकोण उसे किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम बनाता है.
ऑपरेशन सिंदूर
विदेश मंत्री ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को युद्धविराम के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि भारत ने उसके सैन्य ठिकानों को सटीक निशाना बनाया था. यह भारत की कूटनीति और सैन्य क्षमता दोनों की जीत थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिका या किसी अन्य देश की दखलंदाजी से संघर्ष का अंत नहीं हुआ.