‘SIR प्रक्रिया ‘वोटर फ्रेंडली’, बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव आयोग द्वारा पहचान के लिए 11 दस्तावेजों को मान्यता देना इस प्रक्रिया को मतदाता हितैषी बनाता है. अदालत का मानना है कि दस्तावेजों की संख्या बढ़ने से नागरिकों को अधिक विकल्प मिलते हैं, जबकि याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रक्रिया अब भी बहिष्कारी है.

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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव आयोग द्वारा पहचान के लिए 11 दस्तावेजों को मान्यता देना इस प्रक्रिया को मतदाता हितैषी बनाता है. अदालत का मानना है कि दस्तावेजों की संख्या बढ़ने से नागरिकों को अधिक विकल्प मिलते हैं, जबकि याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रक्रिया अब भी बहिष्कारी है.

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इसे “मतदाता-हितैषी” करार दिया. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि पहचान प्रमाण के लिए दस्तावेजों की संख्या सात से बढ़ाकर ग्यारह कर दी गई है, जिससे लोगों को अपने नागरिक होने का सबूत देने के लिए अधिक विकल्प मिलते हैं. हालांकि, याचिकाकर्ता अब भी इसे बहिष्कारी प्रक्रिया बता रहे हैं.

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “पहले सिर्फ सात दस्तावेजों के आधार पर पहचान दी जाती थी, अब ग्यारह विकल्प मौजूद हैं. यह प्रक्रिया को और अधिक समावेशी बनाता है.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की आपत्ति आधार कार्ड से जुड़ी हो सकती है, लेकिन दस्तावेजों के विकल्प बढ़ाना नागरिकों के लिए सुविधाजनक है.

याचिकाकर्ता का ‘बहिष्कारी’ तर्क बरकरार

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि यह प्रक्रिया अब भी बहिष्कारी है. उनका कहना था कि भले ही दस्तावेजों की संख्या बढ़ाई गई हो, लेकिन कई पात्र नागरिकों को इस प्रक्रिया से बाहर किए जाने का खतरा बना रहता है. सिंघवी का यह भी कहना था कि चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में यह तय करना नहीं आता कि कौन नागरिक है और कौन नहीं.

आधार और नागरिकता पर बहस

पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग का काम यह सुनिश्चित करना है कि केवल योग्य नागरिक ही मतदाता सूची में शामिल हों और गैर-नागरिकों को बाहर रखा जाए. अदालत ने यह भी माना कि केवल स्व-घोषणा के आधार पर नागरिकता तय करना कानूनी जटिलताओं को जन्म दे सकता है. यह टिप्पणी तब आई जब सिंघवी ने तर्क दिया कि नागरिकता तय करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं आता.

झारखंड से की तुलना

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी हाईलाइट किया कि झारखंड में समरी रिवीजन के दौरान केवल सात दस्तावेज मान्य थे, जबकि बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण में 11 दस्तावेज स्वीकार किए जा रहे हैं. अदालत का कहना है कि यह बदलाव दर्शाता है कि प्रक्रिया को अधिक समावेशी और सुविधाजनक बनाने की कोशिश की जा रही है, न कि इसे सीमित करने की.

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