जुमे की नमाज के बाद शुक्रवार को बांग्लादेश की राजधानी ढाका और देश के दूसरे सबसे बड़े शहर चटगांव में बड़ी संख्या में इस्लामी संगठनों ने सड़कों पर उतरकर इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. इन रैलियों में हिफाजत-ए-इस्लाम और इंतिफादा बांग्लादेश जैसे कट्टरपंथी संगठनों के सदस्य शामिल थे. उनका आरोप है कि इस्कॉन एक कट्टर हिंदुत्व संगठन है और देश में इस्लाम विरोधी गतिविधियों में लिप्त है.
यह विरोध ऐसे समय में हुआ जब बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की सरकार एक याचिका पर विचार कर रही है, जिसमें इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है. वहीं यूनुस सरकार ने अदालत में इस्कॉन को धार्मिक चरमपंथी संगठन बताकर जवाब दाखिल किया है.
इंतिफादा बांग्लादेश की क्या हैं मांगें?
ढाका की बैतुल मुकर्रम राष्ट्रीय मस्जिद के बाहर हुए एक बड़े प्रदर्शन में इंतिफ़ादा बांग्लादेश ने छह मांगों की सूची जारी की, जिनमें सबसे प्रमुख इस्कॉन पर प्रतिबंध और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई थी. रैली में शामिल कट्टरपंथी नेता जसीमुद्दीन रहमानी ने कहा कि इस्कॉन एक हिंदू संगठन नहीं बल्कि यहूदियों द्वारा बनाया गया चरमपंथी संगठन है. उन्होंने इस्कॉन पर एक के बाद एक अपराध करने का आरोप लगाते हुए तुरंत प्रतिबंध की मांग की.
रहमानी को अगस्त 2024 में यूनुस सरकार के सत्ता में आने के कुछ दिनों बाद जेल से रिहा किया गया था. वहीं इंतिफादा के सदस्य अहमद रफीक ने दावा किया कि इस्कॉन के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक इमाम का अपहरण और उत्पीड़न किया गया, लेकिन राज्य चुप है और अपराधियों को सुरक्षा प्रदान कर रहा है.
चटगांव में भी इस्कॉन के खिलाफ रैली
इसी तरह हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश ने चटगांव की अंदरकिला शाही जामे मस्जिद के बाहर इस्कॉन विरोधी रैली आयोजित की. वक्ताओं ने सरकार से मांग की कि जिस तरह अवामी लीग और कुछ सैन्य अधिकारियों को अपराधों के लिए सजा दी गई, उसी तरह इस्कॉन को भी कानून के दायरे में लाया जाए. रैली के दौरान वक्ताओं ने इस्कॉन को आतंकी संगठन घोषित करने और प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि “देश में शांति बनाए रखने का यही एकमात्र तरीका है.
हिफाजत के केंद्रीय नेता अशरफ अली निज़ामपुरी ने आरोप लगाया कि इस्कॉन भारत के एजेंट के रूप में काम कर रहा है और मुसलमानों के खिलाफ विध्वंसक गतिविधियों में शामिल है. उन्होंने दावा किया कि इस्कॉन ने इज़राइली तरीकों से मंदिरों के नाम पर संपत्ति हड़पी है और सनातन समुदाय पर अत्याचार किया है.
हसीना सरकार के पतन के बाद बढ़ी मुश्किलें
शेख हसीना सरकार के अगस्त 2024 में गिरने के बाद बांग्लादेश में इस्कॉन के खिलाफ विरोध और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. कई इस्कॉन मंदिरों पर हमले हुए हैं और संगठन के नेता कृष्ण दास प्रभु अब भी जेल में हैं. बांग्लादेश के वित्तीय खुफिया इकाई (BFIU) ने जनवरी में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर 17 इस्कॉन सदस्यों के बैंक खाते फ्रीज कर दिए थे.
सेवा कार्यों के बावजूद निशाने पर इस्कॉन
कट्टरपंथियों के आरोपों के विपरीत इस्कॉन 1970 के दशक से बांग्लादेश में सेवा और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहा है. उसके फूड फॉर लाइफ कार्यक्रम ने 1971 के मुक्ति संग्राम और प्राकृतिक आपदाओं के बाद लाखों लोगों को भोजन दिया. इस्कॉन ने स्कूल, अनाथालय और चिकित्सा शिविर भी स्थापित किए हैं, जहाँ धर्म से परे सेवाएं दी जाती हैं.
यूनुस सरकार पर सवाल
इस्कॉन पर प्रतिबंध की मांग और हिंदू मंदिरों पर बढ़ते हमले यह दर्शाते हैं कि बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामवादी संगठनों का प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि यूनुस सरकार इन समूहों के दबाव में काम कर रही है, जबकि सरकार इन आरोपों को लगातार खारिज करती आई है.
















