प्रधानमंत्री ने बिल में खुद के लिए छूट लेने से किया इंकार, मंत्रियों को हटाने वाले बिल पर किरेन रिजिजू का बयान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक प्रस्तावित विधेयक में खुद को छूट देने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया है कि गंभीर अपराध के मामले में यदि प्रधानमंत्री या मंत्री 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं तो उनका पद स्वतः खत्म हो जाएगा. किरेन रिजिजू ने बताया कि मोदी ने स्पष्ट कहा कि वे एक आम नागरिक हैं और उन्हें विशेष छूट नहीं चाहिए. विधेयक अब संयुक्त समिति को सौंपा गया है.

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PM Modi No Exemption Bill
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PM Modi No Exemption Bill : केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक के दौरान, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री के पूरे 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर उनका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा, मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री को छोड़ने का सुझाव आया था. लेकिन मोदी ने सधे हुए स्वर में कहा कि वे जनता के नियमों से अलग विशेष सुरक्षा नहीं चाहते “क्योंकि प्रधानमंत्री भी एक नागरिक हैं.”

नैतिकता पर मजबूती से बोले रिजिजू
रिजिजू ने यह भी कहा, “बहुमत मुख्यमंत्री हमारे ही हैं. अगर हमारे लोग गलती करते हैं, तो उन्हें पद छोड़ना चाहिए. हमारी नीति में नैतिकता का होना ज़रूरी है.” उनका यह बयान विपक्ष के उन लोगों को चुनौती भी व्यक्त करता है, “अगर विपक्ष ने भी नैतिकता को महत्त्व दिया होता, तो वे इस बिल का स्वागत करते.”

तीन नए विधेयक हुई पारित, विपक्ष ने जताई आपत्ति
केंद्र सरकार ने इस सप्ताह तीन विधेयक यूटी संशोधन बिल, संविधान (130वां संशोधन) बिल, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन बिल पेश किए. यदि कोई प्रधानमंत्री, केंद्र या राज्य के मंत्री पर ऐसा गंभीर अपराध हो, जिसमे सजा कम से कम पांच वर्ष हो, और उसे निरंतर 30 दिनों तक हिरासत में रखा जाए, तो 31वें दिन वह पद से स्वतः हट जाएगा.

संयुक्त समिति को सौंपा विधेयकों का अध्ययन
राज्यसभा ने इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने के प्रस्ताव को पारित कर दिया, ठीक वैसे ही जैसा लोकसभा ने एक दिन पहले किया था. गृह मंत्री अमित शाह ने यह प्रस्ताव पास कराया. इस समिति में लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य होंगे. समिति को रिपोर्ट आगामी विंटर सेशन में नवंबर के तीसरे सप्ताह तक पेश करने का निर्देश मिला है.

यह बयान साफ करता है कि सरकार अपने नेतृत्व पर भी सबके अनुसार जवाबदेह, और नैतिकता के आधार पर कार्य करने की प्रतिबद्धता जाहिर कर रही है, जबकि न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए कानून निर्माताओं ने भी कदम उठाए हैं.

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