बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में सभी की नजरें सीमांचल पर हैं. विकास के मामले में लंबे समय से उपेक्षित यह इलाका अब राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो चुका है. किशनगंज इस बार भी चर्चाओं के केंद्र में है. किशनगंज को सीमांचल की सियासत का केंद्र माना जाता है. जिले की चारों सीटों पर मुकाबला दिलचस्प है, क्योंकि पिछली बार AIMIM ने दो सीटों पर जीत दर्ज कर राजनीतिक समीकरण बदल दिए थे. कांग्रेस और आरजेडी एक-एक सीट पर सिमट गई थीं.
किशनगंज में बदले समीकरण
इस बार महागठबंधन और AIMIM के बीच सीधी टक्कर दिखाई दे रही है. आरजेडी ने ठाकुरगंज के अपने मौजूदा विधायक को दोबारा टिकट दिया है, लेकिन बाकी सीटों पर नए चेहरे उतारे हैं. किशनगंज सीट पर कांग्रेस ने अपने ही विधायक को हटाकर AIMIM के पूर्व विधायक कमरूल होदा को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है. बहादुरगंज में कांग्रेस के टिकट पर AIMIM के पूर्व विधायक चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि AIMIM ने कांग्रेस के पूर्व विधायक को उतारा है. कोचाधामन में आरजेडी ने जेडीयू के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम को उम्मीदवार बनाया है.
सीटों पर नेताओं की अदला-बदली ने राजनीतिक बिसात बिल्कुल बदल दी है. कुछ सीटों पर AIMIM मजबूत है और यदि उसने वोट काटे तो बीजेपी के लिए भी जगह बन सकती है.
किशनगंज
कांग्रेस उम्मीदवार कमरूल होदा के मुकाबले बीजेपी ने स्वीटी सिंह को उतारा है. AIMIM यहां वोटों में सेंध लगा सकती है, जिससे बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है.
ठाकुरगंज
आरजेडी के मौजूदा विधायक सऊद आलम का मुकाबला जेडीयू के गोपाल अग्रवाल से है. AIMIM अगर मजबूत वोट बैंक खींच ले तो आरजेडी को नुकसान हो सकता है.
कोचाधामन
पिछली बार AIMIM ने यहां जीत हासिल की थी. अब आरजेडी और AIMIM में सीधी भिड़ंत है. बीजेपी की उम्मीदवार वीणा देवी भी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला आरजेडी बनाम AIMIM का माना जा रहा है.
बहादुरगंज
यहां कांग्रेस ने मुसव्वीर आलम को टिकट दिया है, जबकि AIMIM ने कांग्रेस के पूर्व विधायक तौसीफ आलम को उतारा है. इस सीट पर मुकाबला उलझा हुआ है.
70 फीसदी मुस्लिम वोट
किशनगंज की आबादी का लगभग 70 प्रतिशत मुस्लिम है. रोजगार और विकास यहां की सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन चुनावी चर्चा अक्सर धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ मुड़ जाती है. कांग्रेस–आरजेडी का मुस्लिम समुदाय में परंपरागत प्रभाव है, लेकिन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने युवाओं में विशेष जगह बनाई है.
सीमांचल की भौगोलिक स्थिति इसे खास बनाती है. दार्जिलिंग और सिलीगुड़ी से सटा होने के कारण यहां की जलवायु चाय की खेती के लिए अनुकूल है, लेकिन किसान बताते हैं कि यह अब मुनाफे का धंधा नहीं रहा.
लोगों की उम्मीद
स्थानीय लोग घुसपैठ या कथित फर्जी वोटिंग जैसे मुद्दों को चुनावी प्राथमिकता नहीं मानते. उनकी मुख्य मांग रोजगार, बुनियादी सुविधाएं और उद्योग हैं. सीमांचल के लोग चाहते हैं कि कोई भी सरकार बने, वह इस क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज और उद्योग स्थापित करे ताकि युवाओं को घर में ही रोजगार मिल सके.













