अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियों के खिलाफ लड़ाई में चीन ने भारत से सहयोग मांगा था. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मार्च 2025 में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक गुप्त पत्र लिखा था. इस पत्र का मकसद अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ संयुक्त मोर्चा तैयार करना था. पांच महीने बाद अब यह सीक्रेट लेटर सार्वजनिक हुआ है.
जिनपिंग ने लिखा पत्र
रिपोर्ट के अनुसार, इस पत्र में जिनपिंग ने साफ लिखा था कि ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ चीन के हितों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं. उन्होंने भारत से अपील की कि वह इस आर्थिक जंग में चीन का साथ दे. साथ ही दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाने की बात भी कही गई थी. जिनपिंग ने इस पत्र में एक खास व्यक्ति का भी जिक्र किया, जिसके बारे में कहा गया कि वह इस पूरे समझौते में अहम भूमिका निभा सकता है. हालांकि, उस व्यक्ति की पहचान सामने नहीं लाई गई.
भारतीय राजनयिकों ने बताया कि उस समय चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ युद्ध 250 प्रतिशत तक पहुंच चुका था. जिनपिंग नहीं चाहते थे कि चीन कमजोर दिखाई दे, इसलिए उन्होंने भारत से सीधा संवाद साधा. इस पूरे मसले को बेहद गुप्त रखा गया था ताकि अमेरिका को इसकी भनक न लगे.
भारत ने जून 2025 तक नहीं दी प्रतिक्रिया
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने जून 2025 तक इस पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी. नई दिल्ली इस मसले पर चुप्पी साधे रही और अमेरिका-चीन के बीच तनाव खत्म होने के बाद ही चीन के साथ बातचीत आगे बढ़ाई. इसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल चीन गए, जबकि चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए. इस तरह दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ता शुरू हुई.
ट्रंप की दो बड़ी गलतियां
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की दो बड़ी गलतियों ने भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब ला दिया. पहली गलती भारत-पाकिस्तान सीजफायर को लेकर किए गए उनके बयान थे, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान ने युद्धविराम की बात कही थी. इस दावे से भारत नाराज़ हो गया. दूसरी गलती भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का निर्णय था, जिसने द्विपक्षीय रिश्तों को और बिगाड़ दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप की इन नीतियों के चलते अमेरिका ने दक्षिण एशिया में अपना पुराना भरोसेमंद सहयोगी खो दिया. वहीं, भारत और चीन ने आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों को नई दिशा देने की पहल की.